शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

आज के नेता ,जी

बड़े नेता बने फिरते है ,चंद वादों के खातिर ये लोग
वक्त आने पर भाग उठते है, नेता बताने वाले ये लोग
इनका न कोई ईमान होता है न कोई होता है धर्म
वैसे नही कुछ पास तो लंबे चोड़े भाषण ठोकते है
बड़े नेता बने फिरते है.............
जाते है समस्या हल करने ,गाँव में ये लोग
कारों का तेल फूँक कर प्रदुषण फैलाते ये लोग
ये गाँव में समस्या मिटाने नही
अपनी झांकी दिखाने जाते है ये लोग
बड़े नेता बने फिरते है.............
चुनाव के पास आते ही दोरे शुरू कर देते है ये लोग
चुनाव जीतने के बाद सबकुछ भूल जाते है ये लोग
चुनाव हारने के बाद गली कूचों नजर आते है ये लोग
बड़े नेता बने फिरते है.............

सोमवार, 20 अक्तूबर 2008

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

एक निवेशक कि व्यथा .....


शेयर बाज़ार क्या गिरा हालत पस्त हो गई
लाचार बेबस और ज़िन्दगी बेकार हो गई
दिवाला ही निकल गया दीवाली से पहले
सपने हजारों देखे थे मार्केट में लगाने से पहले
सब कुछ काफूर हो गया सपनो की तरह
ग़म दे गया खुशियों की जगह
अब ज़िन्दगी भी खुशियों और ग़म के साए में
अब अहसास कराने लगी है तन्हाई के साए में
रोज मै टकटकी लगाए बिज़नस ख़बरों को देखता हूँ
जो कभी खुशी कभी ग़म का कराने लगी अहसास है
इसी अहसास में बंधने लगी छोटी सी आस है
बाज़ार की खामोशी अब सही नही जाती
दिवाली पर बिना पैसे लक्ष्मी भी रूठ जाती है
अब हालत ये है कि हर तरफ से टूट रहा हूँ
टूट कर अपने आप से भी रूठ रहा हूँ
अब तो लब भी मेरे खामोश हो गये
मर कर भी जी रहे हालत ये हो गये
दीवाली भी खडी है दहलीज पर
कैसे मनाओ खुशियाँ इस त्यौहार पर
बेटा भी करने लगा है आतिशबाजी की मांग
कपड़े मिठाई और बाइक है उसकी डिमांड
काश एक बार लक्ष्मी जी प्रशन्न हो जाए
बाज़ार के रोनक त्यौहार में बदल जाए