शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

एक निवेशक कि व्यथा .....


शेयर बाज़ार क्या गिरा हालत पस्त हो गई
लाचार बेबस और ज़िन्दगी बेकार हो गई
दिवाला ही निकल गया दीवाली से पहले
सपने हजारों देखे थे मार्केट में लगाने से पहले
सब कुछ काफूर हो गया सपनो की तरह
ग़म दे गया खुशियों की जगह
अब ज़िन्दगी भी खुशियों और ग़म के साए में
अब अहसास कराने लगी है तन्हाई के साए में
रोज मै टकटकी लगाए बिज़नस ख़बरों को देखता हूँ
जो कभी खुशी कभी ग़म का कराने लगी अहसास है
इसी अहसास में बंधने लगी छोटी सी आस है
बाज़ार की खामोशी अब सही नही जाती
दिवाली पर बिना पैसे लक्ष्मी भी रूठ जाती है
अब हालत ये है कि हर तरफ से टूट रहा हूँ
टूट कर अपने आप से भी रूठ रहा हूँ
अब तो लब भी मेरे खामोश हो गये
मर कर भी जी रहे हालत ये हो गये
दीवाली भी खडी है दहलीज पर
कैसे मनाओ खुशियाँ इस त्यौहार पर
बेटा भी करने लगा है आतिशबाजी की मांग
कपड़े मिठाई और बाइक है उसकी डिमांड
काश एक बार लक्ष्मी जी प्रशन्न हो जाए
बाज़ार के रोनक त्यौहार में बदल जाए

3 टिप्‍पणियां:

Amit K Sagar ने कहा…

बहुत अच्छा. जारी रहें.

Ganesh Kumar Mishra ने कहा…

Waah!!! Ashok ji aapne to ek niveshak ki vyatha ko kavita ke roop me parastut kar diya....kamaal hain aap...
Lagey rahiye...

Ritesh Purohit ने कहा…

itna niraash hone ki jaroorat nahi hai.acche din jaldi loutenge.
aur haa tumhari shaadi kaa bhi pata nahi aur ye bachha kahan se aaa gaya.