जमाने कि हसी वादियों मैं
खोता ही चला गया
ख्वाब जो थे बरसों से
देखता ही चला गया ...
लौट कर कभी न देखा
दूर से तुझे कभी न देखा
बस प्यार से ही तुझे
हर दम
देखता ही चला गया ...
आँखों में सपने
मन में उम्मीद
थामकर चलता ही रहा
इन पथरीली राहों
पर कुछ पाने कि चाहत में
आगे बढ़ता ही चला गया .....
सोच थी परिंदों कि तरह
लक्ष्य भी महान थे
जो न डिग सके
कभी इसी उम्मीद में
उन्मुक्त गगन
में उड़ता ही चला गया ....
उम्मीद कि वह किरण
जो दे रही थी रौशनी
रास्ता भी सिमटता गया
मंजिल कि तलाश में
सपनों के साथ ले मै
तेरी तलाश
मैं अपनी मंजिल को पा गया.....
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