शनिवार, 16 जनवरी 2016

रोजगार मिले तो कर सकते हैं जड़ी-बूटियों का व्यवसाय


सहरिया आदिवासी : औषधियों के उपयोग से तो परिचित हैं, लेकिन वैज्ञानिक विधि से अनजान


जंगलों के आसपास रहने वाली सहरिया जनजाति के लोग। औषधीय पौधों को पहचानने में माहिर। फूल-पत्तियों और पौधों की जड़ों से इलाज का ज्ञान भी। लेकिन अब इस विधा से दूर हो रहे हैं। विदिशा जिले के गंजबासौदा ब्लॉक में सहरियाओं के परिवार विस्थापित हो रहे हैं। वजह नई पीढ़ी में इस ज्ञान को निखारने का उत्साह नहीं। जमा की गई जड़ी-बूटियों के दाम भी सही नहीं मिलते। न ही सरकार ने उनके पारंपरिक गुण वैज्ञानिक विधि से विकसित की कोई योजना बनाई।

गंजबासौदा विकासखंड के खोंगरा मालूद निवासी बुजुर्ग घासीराम सहरिया जंगल में मौजूद कई जड़ी बूटियों के बारे में जानते हैं। उनका कहना है कि जंगल में कई प्रकार की जड़ी-बूटियां थीं, जिसका उपयोग पूर्वजों द्वारा दवा के रूप में किया जाता था। बरसात में समय अपो की पत्ती, बड़ी बिलौया, छोटी बिलौया के फूल और पत्ते, चाबिलौरो की बेल, कांदा, कुंवा का बकुला बेल, गिलोय की पत्ती जैसे कई प्रकार की औषधि का उपयोग किया जाता था। वहीं, सर्दी के समय चितावर की जड़, छोटी-बड़ी आंवली, सयरे का फूल, अकौवा का फूल, शीशोन की फली, रवैर की फली, कनेर का पत्ता, अतरझारा, तिलथुआ और शहद जैसी चीजों का संग्रह करते थे। अगर शासन औषधियों से दवाइयां बनाने का वैज्ञानिक विधि से प्रशिक्षण दे तो हमें रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही ओने-पोने दाम पर औषधि बेचने से छुटकारा मिले जाएगा।


दाम मिले तो बढ़ाएं खोजबीन

नहारिया गांव के मुन्नालाल सहरिया बताते है कि जड़ी बूटियों को संग्रह करने के अलग-अलग मौसम होते हैं। बरसात के बाद जड़ी बूटियां और पत्तियां मिलना शुरू होती है। यह काम चार महीने चलता है। जड़ी-बूटियों के गीली होने पर यह कम भाव में बिकती थी। जबकि सुखा कर बेचने से थोड़ा फायदा हो जाता था। साहूकार इन गीली औषधियों को सुखा कर आयुर्वेदिक प्रयोगशालाओं में महंगे दाम पर बेचते थे। पहले की तरह जंगल में जड़ी-बूटियों के उपयोग के प्रति रूझान भी कम हुआ है। सरकार अगर औषधि अच्छे दाम पर खरीदे तो समुदाय के युवा इस काम के लिए तैयार हो सकते हैं।

न पलायन बढ़ता, न ही पोषण में कमी आती

जंगलों के खत्म होने और आज की पीढ़ी के औषधि संग्रह और उनके उपयोग में रुचि नहीं लेने के कारण वे सब भूलते जा रहे हैं। रम्मू सहरिया बताते है कि सरकार द्वारा वन औषधियों के संग्रह को लेकर समुदाय के लोगों के लिए स्थाई रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। अगर इनमें रोजगार की संभावना और औषधि निर्माण के वैज्ञानिक तरीके से क्षेत्र के युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता तो आज न तो समुदाय के लोगों का विस्थापन बढ़ता और न ही पोषण संबंधी समस्याओं में इजाफा होता।

समुदाय के लोगों से चर्चा कर बनाएंगे योजनाएं

स्वसहायता समूह बनाकर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत वन औषधियों को संग्रह कराने का कार्य कराया जा रहा है। इसके लिए वन विभाग और आयुष विभाग इस तरह के कार्य पहले से ही कर रहे हैं। इन्हीं विभागों के माध्यम से जो सहरिया आदिवासी जड़ी-बूटियों के व्यवसाय को रोजगार के रूप में अपनाना चाहते हैं उन्हें स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण देकर औषधियों के व्यवसाय से जोड़ा जा सकता है। इस संबंध में जल्द ही समुदाय के लोगों से चर्चा कर एक योजना बनाई जाएंगी।
सीएम ठाकुर, एसडीएम, गंजबसौदा

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