बुधवार, 17 दिसंबर 2008

मेरा अपना है भोपाल ....



वोह न्यू मार्केट का समां , वोह ब्रिजवासी की चाट ,
वोह टॉप न टाऊन की आइस क्रीम , वह उसमे थी कुछ बात.
वोह मिलन की मिठाई , वोह ICH का डोसा ,
वोह MP नगर की पाव भाजी और जैन का समोसा .

वोह सिटी का सफर , वोह पिपलानी की हवा ,
वोह भेल की रौनक और साकेत का समां .
वोह जनवरी की कडाके की सर्दी , वोह बारिशों के महीने
वोह गर्मी की छुट्टियाँ , जब निकलते थे पसीने .
वोह होली की मस्ती , वोह दोस्तों की टोली ,
वोह दिवाली के पटाखे वो जन्माष्टमी की रोली
वोह लहराके बाइक पर निकलना , वो जिंसी पे मिलना
वोह रात -रात तक गप्पे लगाना , मूड आए तो सलकनपुर निकल जाना
वोह जहांगीराबाद का आकाश होटल , वोह बड़ी झील से आती ठंडी लहरें
वोह सन्डे को झील का नज़ारा , वो VIP सुबह -सुबह भटकना
वोह ओल्ड भोपाल की गलियां ,

इतना सब कह दिया पर दिल कहता है और भी कुछ कहूं
वोह शहर है मेरा अपना , जिसकी अब क्या दूँ मिसाल
वोह शहर कोई और नहीं , मेरा अपना है भोपाल ....

गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

आतंक का नामो-निशाँ मिट जाएगा....

पाक तेरी हरकतों पर लगाम अब लगाना ही पड़ेगा
बहुत हो चुका आतंकी नंगा नाच सबक सिखाना पड़ेगा
इन विध्वंसकारी आततायी कामों ने तेरा मन ही घटाया
विश्व समुदाय के सामने तुझे निरीह अब खड़ा पाया

सेनाओं ने ठान लिया आतंकी शिविर अब निशाना होगा
छूटेगा त्रिशूल जब संग साथ नाग ले तब जो धमाका होगा
इसकी कल्पना को जानकर विध्वंस के अंजाम को समझ ले
करले तौबा अब आतंकियों को सौंपकर सुरक्षा अपनी कर ले

तेरा मान विश्व राष्ट्र के सामने भी पाक साफ नही रह पाया है
गिर चुका सबकी नजरों से फ़िर भी तेरा बल नही गया है
तू जिसके बल पाक आतंकी घुसपैठ जो करता है।
उनका वजूद अब तेरे साथ कुछ दिन और रहने वाला है।

कर ले अपनी सुरक्षा तू अब आतंकियों को सौंपकर
कर देंगे माफ़ तुझे फिर छोटा बच्चा जानकर
नहीं माना तो हम तेरे विष बाण ज्यादा दिन सह नहीं पाएंगे
अब तेरी फन को कुचलने भारतीय प्रक्षेपास्त्र तेरे देश आयेंगे

विश्व बिरादरी का हर देश आज तेरे आतंक से भयभीत हो रहा
अमेरिका का समर्थन भी तेरे साथ नहीं, आतंक के ख़िलाफ़ हमें मिल रहा
कुछ दिन और रुक भारतीय नेता जिस दिन नींद से जाग जायेंगे
फिर होगी आर पार ज़ंग तो तेरे आतंकी भी साथ नहीं दे पाएंगे

वैसे भी तू दिवालिया है होनेवाला पागल तो तू हो चुका है।
पागलों को मारने में दुनिया का कोई क़ानून हमें रोक नहीं पायेगा।
हम तो रहेंगे ही सैफ और दुनिया से आतंक का नामो-निशाँ मिट जाएगा।

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

इन धमाकों से सिहर उठेगा तेरा शहर .......

बम धमाकों से सिहर उठा मेरा शहर
न जाने किन दरिंदों ने कहर ढाया
कभी-कभी ही मिलती रही खुशियां
दिवाली ईद तीज और त्योहारों पर
किसकी लगी नजऱ, सिहर उठा मेरा शहर .....


गंूजते थे वो धमाके, जो कभी शरहदों पर
अब तो गली महोल्लों में डर सताने लगा है
हर लावारिश वस्तु भूली बिसरी की नजर आती है
अब यही लावारिश वस्तु बारूद बनकर
ढा रही है कहर, मेरे शहर पर ....


कर देंगे माफ़ दिल को
देकर झूठा दिलाशा
कोई तुझे साफ़ करने का
लेकर बैठा है इरादा
क्यों करता है तू ऐसी हरकतें
क्यों बेवजह ढाता है कहर
बहुत पछताएगा, सुधर जा
मत ढा कहर मेरे शहर पर
अब सिहर उठा है मेरा शहर...


अब तलक मेरे शहर कि शान्ति को
तू समझ बैठा है नादानी
हम सदा करते रहे माफ़ तुझको
इतने नहीं हम अहिंसा के पुजारी
न कर धमाके तू मंदिरों और मस्ज्जिदों पर
अब सिहर उठा मेरा शहर...

शुक्र कर मेरे शहर के नेता अभी सोये हुए हैं
तांडव के साक्षी त्रिशूल "और "नाग" ठहरे हुए हैं
जिस दिन चल दिए तेरे शहर को
खाक होंगे लोग, मरेंगे बेमौत को
फिर इन धमाकों से सिहर उठेगा तेरा शहर .....

शनिवार, 1 नवंबर 2008

नेता बन सार्थक किजीए .........

सारी दुनिया की बात करते हो
जरा देश की जनता को देखिये
नेताओ को अपना देवता जो मान
पूज रही जनता को देखिये
चुनाव में जो अपना मत देंगे
सत्ता में जो कुर्सी देंगे
ऐसी जनता के हित तो जरा सोचिये
जनता का विश्वास तुम जीत लोगे
पद की गरिमा पर ध्यान अब दीजिय
देश का सम्मान हो तुम ,
जनता का विश्वास हो तुम
ऐसे जनता के विश्वास को
आज नई दिशा दीजिय
बहुत हो चुकी दगावाजी
अब जनता से खिलवाड़
दगाबाजी अब मत किजीए
झूटे वादे छोड़ जानते के
स्वाभिमान को तो पहचानिये
नेता हो तुम देश के हो कर्णधार
देश को नया आयाम अब दीजिय
जनता अब जिसलिए चुने तुम्हें
उसे नेता बन सार्थक किजीए

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

आज के नेता ,जी

बड़े नेता बने फिरते है ,चंद वादों के खातिर ये लोग
वक्त आने पर भाग उठते है, नेता बताने वाले ये लोग
इनका न कोई ईमान होता है न कोई होता है धर्म
वैसे नही कुछ पास तो लंबे चोड़े भाषण ठोकते है
बड़े नेता बने फिरते है.............
जाते है समस्या हल करने ,गाँव में ये लोग
कारों का तेल फूँक कर प्रदुषण फैलाते ये लोग
ये गाँव में समस्या मिटाने नही
अपनी झांकी दिखाने जाते है ये लोग
बड़े नेता बने फिरते है.............
चुनाव के पास आते ही दोरे शुरू कर देते है ये लोग
चुनाव जीतने के बाद सबकुछ भूल जाते है ये लोग
चुनाव हारने के बाद गली कूचों नजर आते है ये लोग
बड़े नेता बने फिरते है.............

सोमवार, 20 अक्तूबर 2008

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

एक निवेशक कि व्यथा .....


शेयर बाज़ार क्या गिरा हालत पस्त हो गई
लाचार बेबस और ज़िन्दगी बेकार हो गई
दिवाला ही निकल गया दीवाली से पहले
सपने हजारों देखे थे मार्केट में लगाने से पहले
सब कुछ काफूर हो गया सपनो की तरह
ग़म दे गया खुशियों की जगह
अब ज़िन्दगी भी खुशियों और ग़म के साए में
अब अहसास कराने लगी है तन्हाई के साए में
रोज मै टकटकी लगाए बिज़नस ख़बरों को देखता हूँ
जो कभी खुशी कभी ग़म का कराने लगी अहसास है
इसी अहसास में बंधने लगी छोटी सी आस है
बाज़ार की खामोशी अब सही नही जाती
दिवाली पर बिना पैसे लक्ष्मी भी रूठ जाती है
अब हालत ये है कि हर तरफ से टूट रहा हूँ
टूट कर अपने आप से भी रूठ रहा हूँ
अब तो लब भी मेरे खामोश हो गये
मर कर भी जी रहे हालत ये हो गये
दीवाली भी खडी है दहलीज पर
कैसे मनाओ खुशियाँ इस त्यौहार पर
बेटा भी करने लगा है आतिशबाजी की मांग
कपड़े मिठाई और बाइक है उसकी डिमांड
काश एक बार लक्ष्मी जी प्रशन्न हो जाए
बाज़ार के रोनक त्यौहार में बदल जाए

सोमवार, 29 सितंबर 2008

आतंकवाद...


जहां कही देखो नजर आता आतंकवाद है
सदियों से हम झेल रहे इस के शिकार है
हमने भी महाशक्ति के सामने प्रस्ताब था रखा
उसने न दिया ध्यान आतंकियों के हाथ में
हथियार को रखा
इक दिन अचानक यू धमाका हुआ
महाशक्ति राष्ट भी थर्रा गया
दो बहु मंजिला भवन मिटटी में मिला
नेस्तनाबूद हो गया
अब अपनी गलती का भी एहसास हो गया
अब तो आतंक का चारो ओर हो गया प्रभाव है
अब जहा कही देखो नजर आता आतंकवाद है.....
आतंक की पराकाष्ठा स्वयं के लिए दुःख दाई हो गई
कल की छोटी सी भूल आज अभिशाप हो गई।
इस दर्द से करह रहा है आज हर देश
क्योंकि बारूद के ढेर पर है बैठा हर देश
फटाको की तरह फूटते बम ओर बारूद हैं
दिवाली भी अब सुरक्षा के साये में
तिरंगा अब भी सुरक्षा की करता गुहार है।
अब जहा कही देखो नजर आता आतंकवाद है.....

अब राजनीति में आतंक भी मुद्दा बन रहा

कल तक था राम मन्दिर और परमाणु करार भी

आज कोई सुरक्षित नही है राजनीति की छांव में

सभी करते है राजनीति अपने बचाव में

नही किसी को मतलब अपने आवाम से

आतंकियों को पनाह मिल रही है कारागार में

सुरक्षा में मुस्तैद खड़े है सैनिक इनके बचाव में

कोर्ट में चल रही है पैरवी

किसी फैसले के इंतजार में

आतंकी कहर बरपाते जा रहे है

अपने अभियान में

धमाकों के नाम पर मरती आवाम हैं

नेता सुरक्षित और जनता बेहाल है

अब तो मर मर कर जी रहे हैं

क्योंकि हर जगह नज़र आता

आतंकवाद है.........

रविवार, 28 सितंबर 2008

तेरे संग मेरा भी नाम हो...

कूची जो कभी रंग बिरंगे रंगों में सनी
कल्पना की उडानो के तरंगो में बनी
कलाकार और चित्रकार के हांथों से लिपटी
जैसे कह रही हो तुम मुझे नया रूप दो
दो मुझे साकार रूप
कई इस कला के कद्रदान हो,
जुड़े तेरा नाम मेरे नाम के साथ
तेरे संग मेरा भी नाम हो

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

शब्दों की माला ...

मन मै तरंगे उठती है
कुछ कह नही पाता
कहाँ क्या लिखू
कुछ नज़र नही आता
फ़िर भी लिख रहा हूँ
शब्दमाला में गुथ रहा हूँ
आज कर रहा हूँ
शब्दों को समार्पित
प्रतिसाद मिलेगा
इस भाव से मै
कर रहा हूँ अर्पित
इसलिए मै बहुत कुछ लिख रहा हूँ
शब्दों की माला को मै गुथ रहा हूँ



न बवंडर खड़े होते ....

इक तुफा क्या आया
कई बवंडर खड़े हो गए
तुम उसी बवंडर में मुझे
छोड़ बेगाने हो गए
दोस्ती करने से पहले
अच्छी तरह समझ गए होते
तो न दोस्त जुदा होते
बवंडर खड़े होते ....

बुधवार, 24 सितंबर 2008

दिल में तुम्ही बसे हो ......

ख्वाब इतने आए की दिल में न समां पाये
ख्वाबो की हसी दुनिया बसा ही न पाये
शांत सागर जिंदगी की हिलोरे ले रहा था
इतिहास को आँचल में ले हकीकत कह रहा था
वो हवा का झोंका ऐसा आया की सब कुछ ले उड़ गया
बेवफाई की नही फ़िर भी नाम बेवफा दे गया
कुछ भी सोचो कुछ भी समझो हकीक़त से तुम परे हो
हकीक़त यह है मेरे दोस्त दिल में तुम्ही बसे हो ।

रविवार, 21 सितंबर 2008

शमा के वजूद से ...


लाखो शमा जले और जले परवाने ,

इसी तरह शमा के वजूद से

वो ख़ुद मिट जाते है

भौरें भी गूंजते है, फूलो कि गंध पाने ,

आख़िर में फंस कर वो ख़ुद कैद हुए जाते है






गुरुवार, 28 अगस्त 2008

तेरी तलाश में .....

जमाने कि हसी वादियों मैं
खोता ही चला गया
ख्वाब जो थे बरसों से
देखता ही चला गया ...
लौट कर कभी न देखा
दूर से तुझे कभी न देखा
बस प्यार से ही तुझे
हर दम
देखता ही चला गया ...
आँखों में सपने
मन में उम्मीद
थामकर चलता ही रहा
इन पथरीली राहों
पर कुछ पाने कि चाहत में
आगे बढ़ता ही चला गया .....
सोच थी परिंदों कि तरह
लक्ष्य भी महान थे
जो न डिग सके
कभी इसी उम्मीद में
उन्मुक्त गगन
में उड़ता ही चला गया ....
उम्मीद कि वह किरण
जो दे रही थी रौशनी
रास्ता भी सिमटता गया
मंजिल कि तलाश में
सपनों के साथ ले मै
तेरी तलाश
मैं अपनी मंजिल को पा गया.....

सब कुछ बहा गया


बिहार में बाढ़ ,मचा गई कहर
लाखो की जिन्दगी में बरपा गई कहर
गाँव के गाँव पानी में बहते चले गए
नाते रिश्ते सभी इस धार में बहते चले गए
क्या दोष था उनका जो पानी में बह गए
परिजनों के सारे अरमां आंसुओं में बह गए हैं
बरसों की मेहनत से की कुछ पूँजी जमा
खून पसीने से सींच बच्चों को किया बड़ा
प्रकृति के इस कहर में सब कुछ जहर बन गया
बरसों से बना सपनों का महल
बाढ़ के कहर में सब कुछ बह गया
फोटो साभार :- बीबीसी एवं गूगल